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पहाड़ की शादियों में 'दाल-भात' का मजा: जूते उतारकर बैठने से लेकर गायों के लिए बचाने तक की मस्ती भरी परंपराएँ!

उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों में शादी का भोजन सिर्फ़ खाने का नहीं, बल्कि एक पूरा अनुभव है। यहाँ जूते उतारकर पत्तल पर बैठना, पूरी पंक्ति के साथ खाना खत्म करने का नियम, और गाय-भैंसों के लिए भोजन ले जाने की मासूमियत भरी आदतें आपको गुदगुदा देंगी। इस ब्लॉग में पढ़िए पहाड़ी शादियों के उन अनोखे रिवाज़ों के बारे में, जहाँ मिट्टी की खुशबू और पानी के स्वाद वाला खाना शहर के मसालेदार व्यंजनों को मात देता है। साथ ही, जानिए वो मजेदार वाकया जब एक बूढ़ी आमा ने पंडित जी से गायों के लिए भोजन माँग लिया और पूरी पंक्ति को कच्चा-पक्का खाना पड़ा! 😄


पहाड़ की शादी: जहाँ भोजन की थाली में छिपी है संस्कृति की खुशबू

उत्तराखंड के पहाड़ों में शादी सिर्फ़ दो दिलों का मिलन नहीं, बल्कि पूरे गाँव का उत्सव होता है। यहाँ के भोजन की थाली में दाल-चावल के साथ-साथ पुरानी परंपराएँ, मिट्टी की सोंधी खुशबू, और कुछ ऐसे नियम भी शामिल होते हैं, जो शहरी लोगों को हैरान कर देते हैं। चलिए, जानते हैं इन्हीं रोचक रीति-रिवाजों के बारे में...


1. "जूते उतारो, पत्तल पर बैठो!" – पहाड़ी भोजन के नियम


पहाड़ की शादी में भोजन करने का सबसे पहला नियम है: "जूते-चप्पल दरवाजे पर उतारो और पत्तल पर पंक्ति बनाकर बैठ जाओ!" यहाँ आप अकेले नहीं, बल्कि पूरी पंक्ति के साथ बैठते हैं। और एक बार बैठ गए तो खाना खत्म किए बिना उठने की मनाही! पानी पिलाने वाला भी पंक्ति के पीछे से घूमकर प्यास बुझाता है, ताकि किसी का ध्यान न भटके।


2. पहाड़ के पानी में छिपा है स्वाद का राज!


शहरों में दाल-सब्जी में तरह-तरह के मसाले डालने पड़ते हैं, लेकिन पहाड़ का खाना तो बस "नमक-मिर्च" से ही जादू कर देता है। यहाँ के पानी में ही इतना स्वाद होता है कि साधारण चावल-दाल भी लज्जतदार लगते हैं। शायद यही वजह है कि शादी के भोजन की यादें लंबे समय तक दिल में बसी रहती हैं।

3. "आमा, ये कमंडल गायों के लिए क्यों?" – एक मजेदार वाकया


एक बार मैं गाँव की एक शादी में भोजन करने बैठी थी। मेरे बगल में एक बूढ़ी आमा ने अपने पत्तल के साथ एक कमंडल और पतीला भी रख दिया। जब पंडित जी ने उसमें भी दाल-चावल डाल दिए, तो मैंने पूछा: "आमा, आप तो अकेली रहती हैं, इतना खाना किसके लिए?"
उन्होंने मासूमियत से जवाब दिया: "बेटा, मेरी गाय-भैंस भी तो घर पर हैं! उन्हें भी तो शादी का प्रसाद चाहिए न?" 😂
फिर क्या था! देखते-ही-देखते आधा भोजन लोगों ने अपने पशुओं के लिए "टू-गो पैक" कर लिया। नतीजा? दूसरी पंक्ति को कच्चा-पक्का भोजन मिला, क्योंकि जल्दी में नया बनाना पड़ा!


4. "भोजन गिनकर बनाओ!" – मेहमानों से ज्यादा गायों का हिसाब


इस घटना के बाद मैंने सोचा: "शादी करने वाले ने शायद मेहमानों को गिना था, पर गाय-भैंसों को भूल गया!" पहाड़ की संस्कृति में पशुओं का स्थान इतना ऊँचा है कि उन्हें भी शादी के भोजन का हिस्सा बनाया जाता है। यहाँ प्रकृति और जीवन का गहरा नाता दिखता है।

क्यों खास हैं पहाड़ी शादियों के ये रिवाज?


* सामुदायिक भावना: सबको साथ बैठाकर खिलाने की परंपरा एकता बढ़ाती है।
* प्रकृति से जुड़ाव: जानवरों के लिए भोजन ले जाना पहाड़ के लोगों की संवेदनशीलता दिखाता है।
* सादगी का संदेश: बिना मसालों के स्वादिष्ट खाना यह सिखाता है कि जीवन की खुशियाँ सरल चीज़ों में छिपी हैं।

निष्कर्ष: वो मिट्टी वाली खुशबू याद रहेगी!


आज भी जब शहरों में पाँच-सितारा होटलों में शादी के भोजन की बात होती है, तो पहाड़ की उस पत्तल पर बैठकर खाए गए दाल-चावल की याद ताज़ा हो जाती है। वहाँ के नियम शायद कड़े थे, पर उनमें एक "अनुशासन" था। वहाँ की गायों के लिए ले जाया गया भोजन शायद "संवेदना" सिखाता था। और वो कच्चा-पक्का खाना... वो तो हमें याद दिलाता है कि जिंदगी में कभी-कभी बिना प्लान के चलने में भी मजा आता है!


आखिरी बात:
"पहाड़ की शादियाँ सिखाती हैं कि खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं। चाहे वो इंसान हों या गाय-भैंस, सबको साथ लेकर चलो!" 🌄🐄


क्या आपने भी पहाड़ी शादियों के ऐसे अनोखे अनुभव जिए हैं? कमेंट में बताएँ! 😊

writen by :- Radha Bangari