विवरण:
"माँ काली के आशीर्वाद से सिंचित, विकास के लिए समर्पित, और जनता के दर्द को अपना दर्द मानने वाले राणा सत्यसिंह जी की अधूरी गाथा। पढ़िए कैसे एक गरीब किसान का बेटा टिहरी का विकास पुरुष बना, कैसे उसने रोड, पेड़ और भेड़ के मंत्र से पहाड़ों को बदलने का सपना देखा, और क्यों आज भी उसका नाम इतिहास के अंधेरे में खोया हुआ है।"
भूमिका:
टिहरी की धरती ने एक ऐसा सपूत पैदा किया, जिसने न सिर्फ विकास को नया अर्थ दिया, बल्कि आस्था और संघर्ष को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया। राणा सत्यसिंह जी — जिनका जीवन माँ काली की भक्ति से लेकर गाँवों की चौपालों तक फैला था। यह कहानी है एक ऐसे योद्धा की, जिसने अपने 45 बसंतों में टिहरी को नई दिशा दी, मगर आज उसी टिहरी ने उसे भुला दिया।
जन्म से जुड़ा संघर्ष: गरीबी में पलकर बने विकास पुरुष
- जन्म: गाँव चौरा (पट्टी नैलचामी, टिहरी गढ़वाल) के एक साधारण किसान परिवार में।
- शिक्षा: बी.ए. और एलएलबी की डिग्री हासिल कर प्रताप इंटर कॉलेज, टिहरी में अध्यापन शुरू किया।
- नौकरी से मोहभंग: टिहरी स्टेट में पी.ए. सेटलमेंट कमिश्नर और एस.डी.एम बने, पर गरीबों की पीड़ा देखकर नौकरी छोड़ दी।
- राजनीति में कदम: 1952 में देवप्रयाग से निर्दलीय विधायक चुने गए। 1961 में जिला परिषद के अध्यक्ष बने।
माँ काली का आशीर्वाद और वो स्वप्न जो बन गया अंतिम संदेश
राणा जी का जीवन आस्था और कर्म का अनूठा संगम था:
- कालीमठ की साधना: सुबह 4 बजे उठकर माँ काली की उपासना। एक पुजारी ने उन्हें श्रीयंत्र भेंट किया, जिसके बाद उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
- अंतिम चेतावनी: माँ काली ने स्वप्न में कहा — "हे राणा! तेरा-मेरा साथ यहीं समाप्त होता है।" इसके बाद वे लखनऊ से योजनाएँ लेकर लौटे, मगर जाजल गदेरे पर बस दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
विकास के वो स्तंभ जो आज भी खड़े हैं
राणा जी ने टिहरी को दिए वो उपहार, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता:
1. सड़कें:
- टिहरी-घनसाली-तिलवाड़ा मोटर मार्ग।
- रुद्रप्रयाग (तब टिहरी का हिस्सा) में जखोली विकासखंड की स्थापना।
2. शिक्षा:
- दर्जनों स्कूलों की नींव रखी।
- चम्बा-मसूरी फलपट्टी योजना से किसानों को जोड़ा।
3. स्वरोजगार:
- भेड़ पालन को बढ़ावा देकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया।
4. पर्यावरण:
- गाँव-गाँव वृक्षारोपण अभियान चलाया।
आज का टिहरी: विरासत को भूला एक समाज
राणा जी के नाम पर एक भी संस्थान नहीं, जबकि उनके योगदान अमिट हैं:
- राजनीतिक उपेक्षा: नेताओं को याद है सिर्फ वोट, इतिहास नहीं।
- युवाओं की अज्ञानता: नई पीढ़ी नहीं जानती कि उनके गाँव की सड़क किसके संघर्ष की देन है।
- सामाजिक चुप्पी: कोई संगठन उनके नाम को आगे नहीं बढ़ाता।
सवाल: क्या हम इतने कृतघ्न हैं कि अपने ही नायक को भूल गए?